SANGEETA SINGH

Children Stories Comedy

4.4  

SANGEETA SINGH

Children Stories Comedy

आलसी पंडित की कहानी

आलसी पंडित की कहानी

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 पूर्वकाल में एक पंडित रहते थे,निरक्षर थे इसलिए उन्हें पुरोहित का कार्य करने कोई नहीं बुलाता था। बस दान धर्म कोई करता,वही अनाज ,पैसे  मिल जाते। बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चलता था, पंडित जी की पत्नी बहुत परेशान थी,वह रोजाना उन्हें काशी जाकर विद्याअध्ययन करने कहती,लेकिन पंडितजी को बिना कुछ किए खाना किसी तरह मिल ही रहा था ,तो पढ़ते क्यों? काम क्यों करते।यही सोच वो बहाना बनाया करते।

एक दिन पंडित जी की पत्नी ने पंडित जी को बाहर निकाल दिया,और हिदायत दी अगर बिना पढ़े आए तो तुम्हें घर में घुसने नहीं दूंगी।पंडित जी बेचारे ,पत्नी के आक्रोश के मारे।करते भी क्या ,अब तो जाना ही पड़ेगा।धीरे धीरे मंद चाल में निकले काशी की ओर।जिस चाल से चल रहे थे ,उससे तो सप्ताह भर में भी न पहुंचते।

गांव के चौराहे पर पहुंच कर ,पंडित जी का इरादा कमजोर हो गया,उन्हें घर की याद आने लगी ।

पंडित जी शाम ढलते वापस लौट आए।हिम्मत तो थी नहीं ,घर में घुसने की ,तो घर के पिछवाड़े बैठ गए।

उन्होंने देखा रसोई घर के कूड़े में लौकी का छिलका फिंका था।पंडित जी ने अनुमान लगाया, कि आज घर में लौकी की सब्जी बनी है।थोड़ी देर में में पंडितानी रसोई में आई ,उसने आटे की लोई को 4 बार पटका , उससे पता चला कि 4 रोटी बनी है।थोड़ी देर में पंडित जी ने दरवाजा खटखटाया,पंडितानी ने दरवाजा खोला,वह हैरान रह गई,पंडित जी को देख ।आप कैसे?उसने दरवाजा बन्द करना चाहा।

पंडित जी बोले_"भागवान , मैं काशी से पढ़ कर लौट आया।मैं ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता हो गया हूं।"

"लेकिन कोई एक दिन में कैसे ज्योतिष शास्त्र का पंडित बन सकता है"_पंडितानी ने कहा।

"तुम विश्वास करो या ना करो,मैं काशी जाने के लिए चला था ,लेकिन रास्ते में तुम्हारी याद आने लगी ।मैं दुखी होकर चौराहे पर बैठ गया,और रोने लगा। तभी एक स्त्री मेरे पास आई ,उसने कहा क्यों रो रहे हो?

मैने कहा मैं काशी जा रहा हूं,विद्या अध्ययन को,लेकिन मेरा मन घर में लगा है,तब उसे मुझ पर दया आ गई , उसने मुझे आशीर्वाद दिया कि ,अब तुम ज्योतिष शास्त्र के बड़े ज्ञाता हो जाओगे।

और मैं वापस आ गया।" पंडित जी की बात का अभी भी उनकी पत्नी को विश्वास नहीं हो रहा था। 

पंडित जी की पत्नी ने कहा _"अगर आप सत्य बोल रहे हैं तो आपको परीक्षा देनी होगी।"

पंडित जी ने कहा_"ठीक है , मैं तैयार हूं।"

फिर क्या हुआ दादी ,उन पंडितानी ने कैसे परीक्षा ली, पंडित जी की?_रवि बोला।

दादी बोली_

पंडितानी ने पूछा _"ये बताईए आज खाने में क्या बना है?"

पंडित जी ने थोड़ा समय लगाते हुए कहा_गणना के अनुसार ,आज गृह में सब्जी और रोटी बनी है।

अच्छा!

"सत्य है"_आश्चर्य से पंडितानी की आंखें फैल गईं।

"अच्छा ये बताओ किस चीज की सब्जी और कितनी रोटी बनी है?"

फिर पंडित जी ने ग्रह ,नक्षत्र का हिसाब लगा कर उंगलियों पर गिन कर बताया ,"रोटी की संख्या 4 है,और सब्जी तो लौकी की बनी है।"

"अरे वाह ,पंडित जी आप तो सचमुच विद्वान हो गए हैं"_पंडितानी ने कहा।

गांव भर में चर्चा होने लगी कि पंडित जी ज्योतिष शास्त्र के पुरोधा हैं।हर कोई अपनी कुंडली ,हाथ दिखाने पहुंच जाता ,चारो ओर ख्याति फैल गई।अब खाने को कोई कमी न थी,लक्ष्मी का शुभागमन हो चुका था। पंडित और पंडितानी ,किसी सेठ से कम न हो चले थे।लेकिन कहते हैं न सुख के दिन की मियाद छोटी होती है।पंडित जी पर पहाड़ टूटने वाला था।


उनके देश के राजा ने यह ऐलान कराया था कि ,रानी का नौलखा हार चोरी हो गया है ,जो उस हार को ढूंढ लाएगा ,उसे हीरे ,जवाहरात,अशर्फियों की सौगात दी जाएगी ,अगर वो झूठ बोल कर बरगलाएगा ,तो उसे मृत्यु दण्ड,अर्थात जो हार नहीं खोज पाएगा उसे मृत्यु दण्ड मिलेगा।


राज्य भर में डुगडुगी बजवा दी गई।पंडितानी को बहुत अच्छा अवसर मिल गया , माल अशबाब पाने का।उसे पूरा विश्वास था कि पंडित जी ,हार ढूंढ लेंगे ,इसलिए वो पंडित जी के पीछे लग गई।

पंडित जी बहाना बना रहे थे,उन्हें पता था उनकी पोल खुल जाएगी।लेकिन पंडितानी ने भी आखिरकार त्रिया चरित्र के हथकंडे अपना पंडित जी को जाने के लिए मना ही लिया।

लेकिन पंडित जी ने शर्त रखी , कि "आज के बाद से कहीं जाने को नहीं कहोगी।जो भी रूखा सूखा मिलेगा वही खाओगी।"

पंडितानी ने हामी भर ली,उसे मालूम था, कि पंडित जी इतना धन लाएंगे कि उन्हें ,क्या उसके सात पुश्तों को कमाने की जरूरत ही नहीं होगी ।उसने हामी भर दी।


भोर हुई,स्नान ध्यान कर जलपान ग्रहण कर ,पंडित जी राजमहल जाने को तैयार हो गए ,पूरा गांव पंडित जी की जयकार लगा रहा था।सभी खुश थे,सिर्फ एक अकेले पंडित जी को छोड़।


पंडितानी ने दही खिला ,शगुन किया।और पंडित जी निकल पड़े।राजमहल में उनका यथोचित स्वागत हुआ ।राजा ने बताया कि ,रानी का नौलखा हार दो दिन ,पहले ही गायब हुआ है।

अगर आप उसे खोज कर ला देंगे तो आपको हीरे जवाहरात,अशर्फियों से लाद दिया जाएगा ,लेकिन अगर आप नही खोज पाओगे तो आप वापस नहीं जा पाओगे ,आपको मृत्युदंड दिया जाएगा।इसके लिए आपको दो दिन का समय दिया जाता है।आप अब बिना काम खत्म किए कहीं जा भी नही सकते हैं।आपके रहने का प्रबंध कर दिया गया है।

पडित जी ने हामी में मुंह हिलाया _"जैसा आदेश महाराज।"


पंडित जी को एक सुसज्जित कमरे में ठहराया गया।आसपास सैनिकों,दासियों के घर भी थे।

पंडित जी ने रात का खाना किसी तरह खाया,सोने गए तो नरम गद्दे पर जैसे किसी ने शूल बिछा दी हो वो सिर्फ करवट ही लेते रहे ।नींद कोसों दूर थी,आखिर डर से वो गा गा कर निंदिया रानी को बुलाने लगे।वो जोर जोर से गाने लगे_

"आ री निंदिया बिहान जान जाएगी।

आ री निंदिया बिहान जान जाएगी।"

(नींद तू आ जा ,कल तो मेरी जान चली ही जायेगी)।

उनकी आवाज रानी की दासी के कानों में पड़ी।

उसने भी पंडित जी के ज्योतिष और पांडित्य के काफी चर्चे सुने थे ,उसे भी नींद नहीं आ रही थी ।

वह बहुत देर तक करवट बदलती रही ,आखिरकार उसने पंडित जी से मिलने का निर्णय लिया।

वह पंडित के कमरे की ओर दबे पांव पहुंची,दरवाजा खटखटाया।

पंडित जी ने सोचा ,इतनी रात कौन हो सकता है? क्या पता राजा उसकी असलियत जान गए हों कि मैं ढोंगी हूं मुझे सजा देने को बुलाया हो_धड़कते दिल से पंडित जी ने डरते डरते दरवाजा खोला।

सामने एक युवती को ,इतनी रात आया देख पंडित जी सकपकाए।

हकलाते हुए पूछा _"कौन हो तुम?इतनी रात क्यों आई हो मेरे पास।"


त्राहिमाम पंडित जी ,त्राहिमाम और वह पंडित जी के पैर पर गिर पड़ी।पंडित जी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।"क्यों आई हो? ,उठो मेरे पैर से_"पंडित जी ने झिड़कते हुए कहा।


"पंडित जी आप सर्वज्ञानी हैं।आपने ही तो मुझे आगाह किया की,_, मैं आकर आपके पास अपना गुनाह कबूल कर लूं,अन्यथा कल मेरी मौत निश्चित है।"

"क्या.....?" पंडित जी ने कहा।

"जी पंडित जी ,मैं ही निंदिया हूं",रानी साहिबा की दासी ।मैंने ही रानी का हार चुराया है।१

अब आप जान ही गए हैं ,तो कृपया करके मुझे बचा लीजिए ।

अब पंडित जी को सारा माजरा समझ में आ गया।

पंडित जी बाहर से दिखावटी गुस्सा दिखाते हुए बोले,_"हां ,मुझे तो आते ही समझ में आ गया था , कि हार तुमने चोरी की है।अगर बचना चाहती हो ,तो वो हार मेरे बताए स्थान पर गाड़ दो।"

निंदिया ने डरते डरते कहा _"जी पंडित जी।"

पंडित जी ने उसे रात में एक खाली जमीन दिखा दिया।निंदिया ने गड्ढा खोद वहीं हार गाड़ दिया।

दोनों फिर जाकर अपने अपने कमरे में सो गए।अब दोनों को ही अच्छी नींद आई।

सुबह दरबार लगा ,जनता भी पंडित जी का करिश्मा देखने बड़ी संख्या में आई थी।

लेकिन पंडित जी नदारद।

राजा ने सिपाहियों को कमरे पर भेजा ,तो पंडित जी को सोता पाया।उन्होंने पंडित जी को उठाया और दरबार में हाजिर होने को कहा।पंडित जी जल्दी जल्दी स्नान कर ,दरबार पहुंचे।

राजा ने कहा _"क्यों पंडित जी ,आपने हार खोज लिया?"

पंडित जी ने कहा _"बस थोड़ा वक्त दीजिए ,मैं ग्रह नक्षत्रों का हिसाब लगा ,आपको अभी बताता हूं।"

राजा ने कहा _"ठीक है।"

पंडित जी ने अपना स्थान ग्रहण किया।और पोथी पत्र ले कर जोड़ ,घटाव करने लगे।

दरबार में पूरी तरह से शांति छा गई,सब पंडित जी के बोलने का इंतजार कर रहे थे।

अचानक पंडित जी उठे ,और उन्होंने अपने पीछे सबको आने का इशारा किया।

पंडित जी एक खुले स्थान पर जाकर रुके।

उन्होंने कहा ,एक स्थान की तरफ इशारा किया खुदाई के लिए।वहां खोदते ही हार दिखाई पड़ा।

सभी खुशी से उछल पड़े,पंडित जी की जय जयकार होने लगी ,पंडित जी की छाती गर्व से चौड़ी हो गई।

राजा ने बहुत सारे हीरे जवाहरात पंडित जी को भेंट किए ,और कहा ,अगर आप राजपुरोहित का पद संभाल लें ।लेकिन पंडित जी ने नम्रता से अस्वीकार कर दिया।घर लौट कर पंडित ने पंडितानी को माल असबाब सौंप दिया,और खुशी खुशी जिंदगी जीने लगे।


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