आज फिर उनका जिक्र हुआ !
आज फिर उनका जिक्र हुआ !
शुरुआत मेरे फोन की घंटी बजने से होती है।
मै फोन उठता हूं और पूछता हूं कौन ? दूसरी ओर की आवाज सुनकर मै थोड़ा आश्चर्य चकित हो जाता हूं। कि ये तो मेरा बरसों पुराना दोस्त है, जो की मुझे संदेह है की अब दोस्त भी है या नही।
जब उसने पूछा की मै कैसा हूं ? तो मेरे मन में खुशी और उत्सुकता की लहरें दौड़ गई।
मन तो किया कि सब कुछ कह दूं पर सालों पुरानी समय की खाई ने मुझे रोक लिया और मैंने वही रटा रटाया जवाब दिया " मै अच्छा हूं तुम सुनाओ"।
फिर हम दोनों ने घर परिवार और काम काज की बाते की। हम दोनों के पास ही समय काम था या यूं कहूं कि समय ने हमारी बात करने की इच्छा को थोड़ा कम कर दिया है और व्यस्तता तो एक बहाना मात्र है।
फिर उसने वो बात की जिसका शायद मुझे इंतजार था।
उसने पूछा कि स्कूल के किसी और दोस्त से बात होती है क्या ? तो मैंने मायूसी भरे शब्दों में कहा "कंहा यार आज कल समय किसके पास है"।
फिर मैने पूछा ' क्या तुम मिलते हो किसी से ' ? तो मानो मायूसी फोन की तरंगों से होकर उस तक भी पहुंच गई और उसने भी वही जवाब दिया।
बातो बातो में उसने हमारे स्कूल की बात छेड़ दी और हम अपनी शैतानियां याद कर ठहाके मारने लगे। कि सहसा उसने वो नाम लिया जिससे पल भर के लिए मै वहीं स्तब्ध हो गया।
वो नाम जिसकी तस्वीर यादों में कहीं धुंधली सी हो गई थी। और आज उसने उस तस्वीर से मिट्टी हटा दी थी।
मेरी हालत अब ऐसी थी " कि किसी को बारिश पसंद हो , मगर जुकाम के डर से वो उसमे कभी भीगा ही नही " और आज आठ सालों बाद उस बारिश की बौछार मात्र ने मेरे मन को भिगो दिया । और मेरे चहरे पर एक मुस्कान आ गई ।
तभी मैंने पूछा कैसी है वो ??
