(2) तुम मेरे काबिल नहीं हो
(2) तुम मेरे काबिल नहीं हो
अंतरा बिलकुल अचंभित थी।
ज़ब सुशांत ने अंतरा के पास शादी का प्रस्ताव रखा तो...
अंतरा ने खुशी खुशी सुशांत के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
वैसे... कोई था जिसे यह रिश्ता मंज़ूर नहीं था। मंज़ूर क्या... वह तो अंतरा की शादी ही नहीं करवाना चाह रही थी।वह थी अंतरा की सौतेली माँ।
सुशांत के घरवाले जब रिश्ता लेकर आए तो उसकी सौतेली मां को बिल्कुल पसंद नहीं आया। वह अभी अंतरा की शादी नहीं करवाना चाहती थी। लेकिन रिश्ता लड़के वालों की तरफ से आया था तो वह क्या कर सकती थी।
उसे हारकर बात माननी पड़ी थी। अंतरा के पिता केशव जी अपनी बेटी का घर बसता हुआ देखकर बहुत खुश थे।
और...फिर...
अंतरा सुशांत की दुल्हन बनकर उसके घर आ गई। उसकी जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरु हो गया था।
अब अंतरा अपनी जिन्दगी में सुशांत के जुड़ जाने से बहुत खुश थी। वह शादी के बाद भी नौकरी भी करती और घर भी संभालती थी।
शुरु में तो सुशांत घर के खर्चे राशन वगैरह में खर्च करता पर धीरे-धीरे सुशांत ने घर की किस्त और बाकी सारे खर्चों का भार भी अंतरा पर डालना शुरू कर दिया और खुद की जिंदगी में सहूलियतें और सुविधाएं बढ़ाने लगा।
जैसे कि ... वह अक्सर कहीं भी जाना होता तो टैक्सी लेकर जाता। जबकि अंतरा काफी मितव्ययिता से खर्च करती थी।
इसके अलावा सुशांत फ्लाइट से आना जाना ज़्यादा करता था , वह भी बिज़नेस क्लास में, जो कि अनावशक विलासिता थी। और इससे घर का बजट भी डांवाडोल होता था। सुशांत की जिन्दगी में लग्जरी बढ़ती ही जा रही थी। और जिम्मेदारियां कम होती जा रही थीं। जबकि अंतरा बहुत ही कंजूसी से काम चला रही थी।
शादी के पहले जितना पैसा भी वह खुद पर खर्च करती थी , शादी के बाद उतना भी नहीं कर पाती थी।
वैसे देखा जाए तो कुल मिलाकर अंतरा की हालत कमोबेश वैसी ही थी जैसे अब तक की ज़िन्दगी वह जीती आई थी।
खुब काम करना और अपने बारे में ना सोचना और उसके सीधेपन का दूसरों द्वारा फायदा उठाया जाना।
कुछ ख़ास नहीं बदला था उसकी ज़िन्दगी में। पहले उसके पैसे लेकर सौतेली माँ मीना ऐश करती थी और अब सुशांत तरह तरह के बहाने से उस पर खर्चे का दबाव बढ़ाता जा रहा था।
वैसे... शादी के पहले तो उसकी आधी तनख्वाह मीना ले लिया करती थी। घर के छोटे भाइयों की पढ़ाई की और पिता की दवाई के नाम पर मजबूर होकर अंतरा दे दिया करती थी।
पर.....
यहां तो मामला ही कुछ अलग था।
अब अंतरा को उसे धीरे धीरे यह एहसास हो रहा था कि.... उसके तईं सुशांत कुछ ज्यादा ही अय्याशी का जीवन जी रहा है।
और... घर की ज्यादा जिम्मेदारी उसपर देकर और निश्चिंत हो गया है। और अंतरा खुद पर कुछ भी खर्च करने से पहले कई बार सोचती थी।
और एक बात .… बचपन से उसे दबाकर पालने की वजह से उसे अपने हक में बोलना और ना बोलना नहीं आता था। वह बहुत संकोची स्वभाव की हो गई थी।
अपने हक के लिए आवाज उठाना खुद के लिए कुछ बोलना तो अंतरा ने कभी सीखा ही नहीं था।
बिन माँ की बच्ची अंतरा बचपन से अकेलापन झेलती आई थी और वह
रिश्तों को खोने से बहुत डरती थी। इसलिए रिश्ता निभाने के नाम पर कई बार सब कुछ समझते हुए भी चुप रह जाती थी।
पर ...इस बार उसे अपने पर खर्च करना बहुत जरूरी हो गया था ।
हुआ यह था कि... अंतरा के ऑफिस में एनुअल डे था। तो उसने अपने लिए एक सिल्क की महंगी साड़ी और एक पर्स खरीदा। आखिर अब वह कंपनी की सीनियर मैनेजर थी। उसे प्रेजेंटेबल दिखना जरूरी था।
सामान खरीदकर पार्लर होते हुए जब वह घर आई तो घर में सुशांत का मुंह सूजा हुआ था और सास दुर्गादेवी अलग मुंह बनाए हुए थी, और ससुर तो कभी कुछ बोलते ही नहीं थे।
"अंतरा! तुमने इतना पैसा खुद पर खर्च कर दिया ,यह जानते हुए भी कि इस महीने हमारा गीजर खराब हो गया है और सोफा भी नया लेना है! "
सुनकर अंतरा चौंक गई । एक तो उसने अपनी जरूरत का सामान खरीदा है। और जहां तक गीजर और सोफे की बात है। वह तो सुशांत अपने पैसे से भी ला सकता है। फिर सब चीजों को लेने पर सारे खर्चे अंतरा के सिर पर ही क्यों मढ दिए जाते हैं?
प्रकट में उसने सुशांत से कहा,
"यह सामान मैंने कोई लग्जरी के लिए नहीं खरीदी है बल्कि इसकी ज़रूरत थी । लेकिन अभी कंपनी के एनुअल डे लिए खरीदना बहुत जरूरी हो गया था। आखिर मुझे भी प्रेजेंटेबल दिखना जरूरी है। मैं कंपनी की सीनियर मैनेजर हूं, इसके अलावा मैं घर भी संभालती और नौकरी भी करती हूं। कभी-कभी तो खुद पर खर्च करती हूं वह भी तुमको आंख लगता है?"
आज अंतरा ने पता नहीं कैसे अपना मुंह खोल दिया ।
सुनकर तपाक से सुशांत ने भी कह दिया,
"देखो अंतरा! तुम अगर नौकरी करती हो तो कोई एहसान थोड़ी करती हो। इसके बदले में मैं ने तुम्हें घर की मालकिन बनाया हुआ है । वरना तुम अब तक सौतेली मां के चरणों में पड़ी होती। और किसी तरह अपमान सहकर रह रही होती ! "
" ये यह क्या कह रहे हो तुम...? तुम्हें कुछ होश भी है ? "
अंतरा ने आहत होकर कहा।
" ठीक ही तो कह रहा हूं... अरे! और तो और तुम्हें मेरा एहसान मानना चाहिए कि तुम कोई खास खूबसूरत नहीं हो फिर भी मैंने तुमसे शादी की। मैंने सोचा था ...नौकरीपेशा लड़की आएगी तो घर का खर्चा भी बंटाएगी और मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर भी चलेगी!"
सुशांत लगभग चीखते हुए बोला।
यह क्या कह रहा था सुशांत....?
अंतरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
और....
इधर सुशांत जैसे अपनी पूरी भड़ास निकाले जा रहा था।
" तुम एकदम चुपचाप सी लड़की थी। ना ही ज्यादा स्मार्ट और ना ही कोई हूर की परी..... और फिर...
मैंने सोचा था कि ये परेशान सी लड़की...सौतेली मां के दुख से त्रस्त है तो यहां आकर सब की बात मानेगी भी।
और....तुम्हें क्या लगा था बिना दहेज के मैंने तुमसे शादी की ही इसलिए कि तुम अपनी तनख्वाह से इस घर की चीजें लाओगी और मेरी कुछ आर्थिक मदद भी हो जाएगी ।
वरना....तुमने कभी सोचा है जो और ना तो तुम में ऐसा कोई खास कौन नहीं है जो कोई लड़का तुम पर लट्टू हो जाए और शादी के लिए मेहनत करें!" तुम तो यहां आकर कुछ और ही रंग दिखाने लगी हो!"
"यह सब तुम क्या बोले जा रहे हो सुशांत? तुम्हें कुछ होश भी है ?"
अंतरा ने उसकी बातों से तड़पकर कहा। अब सुशांत ने कुछ और ही क्रोध में आकर कहना शुरू किया, . .
" अंतरा! तुम तो शुक्र मनाओ कि तुम्हारी जैसी अभागी लड़की को कोई परिवार मिला हुआ है जो अपने पैदा होते ही अपनी मां को खा गई थी उस लड़की से शादी करने से पहले कोई भी लड़का दस बार सोचता
लेकिन मैंने तुमसे प्यार भी किया और शादी भी की। और वैसे भी तुम्हारे मायके में एक नौकरानी से ज्यादा तुम्हारी हैसियत क्या थी ? मुझे सब पता है वहां तुम्हारी सौतेली मां तुम्हें कितना तकलीफ दिया करती थी!"
होगा
इसके आगे अंतरा से और नहीं सुना गया। उसने अपनी आवाज थोड़ी दृढ़ करके कहा,
" हां, मैं अहसान करती हूं, तुम पर क्योंकि तुम्हारी कमाई मुझसे बहुत कम है। इसके अलावा तुम्हारा कर्ज भी बहुत बढ़ा चढ़ा हुआ है । घर की आर्थिक स्थिति में हाथ बंटाती हूं और तुमको तुम्हारे बाबूजी और मां जी को मैं पूरी इज्जत देती हूं। लेकिन बदले में तुम लोग मेरे से नौकरानी जैसा सलूक करते हो। हां ! अगर तुम मुझे प्यार करते तो अब तक तब तुम्हारा हक होता मुझको लेकिन तुम लोग मुझे प्यार नहीं करते सिर्फ मेरे पैसे का इस्तेमाल करते हो इसलिए मैं तुम लोगों पर एहसान करती हूं। और सुनो.… जिस तरह तुम अपनी कमाई अपनी मर्जी से अपने आप पर खर्च करते हो, वैसे ही मेरी कमाई पार मेरा पूरा हक होना चाहिए!" अंतरा के स्वर बहुत दृढ़ थे और बहुत देर तक उस घर में गूंजते रहे थे।
ऐसा कहते ही सुशांत शांत हो गया।
सास ससुर तो पहले ही दोनों की लड़ाई देख सुनकर अपने कमरे में चले गए थे।
अब.....सुशांत के मूंह से यह सब सुनकर अंतरा का शरीर गुस्से से कांप रहा था और दिमाग नहीं काम कर रहा था। वह सोच भी नहीं पा रही थी कि ...
सुशांत उससे ऐसी बातें भी कर सकता है?
और सुशांत उसे प्यार नहीं करता सिर्फ उसने अपने फायदे के लिए शादी की है! उसे यकीन नहीं आ रहा था।
जब सुशांत को यह एहसास हुआ कि उसने अंतरा को क्या कुछ नहीं बोल दिया है , तब वह अंतरा से माफी मांगने आया,
"मुझे माफ कर दो अंतरा! गुस्से में पता नहीं मैंने क्या कुछ तुम्हें कह दिया। दरअसल ... मैं यह सब नहीं कहना चाहता था, जो तुमने सुना। पर मुझे लग रहा था कि तुम शायद अपनी कमाई का रौब दिखा रही हो!"
पति पत्नी के खर्चे तो साझे होते हैं ना ...! पर यहां मुझसे गलती हो गई कि मैंने खुद पर ज्यादा खर्च किया और घर का खर्च तुम पर डालता गया। मैं आगे से इस बात का पूरा ध्यान रखूंगा। और मैं अपने शब्दों के लिए तुम से बार बार माफी मांगता हूं!"
सुशांत ने कई बार उससे बहुत माफी मांगी। लेकिन उस वक्त अंतरा उससे कुछ भी सुनने की हालत में नहीं थी।
इसलिए उसने अपने आपको अपने कमरे में बंद कर लिया। पूरे घर में एक सन्नाटा था। और इस सन्नाटे में एक आवाज अंतरा के मन में गूंज रही थी कि,
उसने आज तक अपने हक में आवाज नहीं उठाई । अपने बारे में नहीं सोचा, तभी लोगों को आज उसका बोलना बुरा लग रहा है। और लोग उसकी शराफत और अच्छाई का फायदा उठाते हैं।
अब बहुत हो चुका ...!
अब अंतरा अपने हक के लिए जरूर बोलेगी और और रिश्ते में सामने वाले से भी ईमानदारी की उम्मीद जरूर रखेगी। सुशांत जब माफी मांग कर गया , तभी अंतरा ने इस रिश्ते को थोड़ा सकारात्मक ढंग से सोचना शुरू किया।
वरना … जिस ढंग से सुशांत ने उसका अपमान किया था उसने तो सोच लिया था कि वह यह घर छोड़कर अब चली जाएगी और यह रिश्ता भी खत्म कर देगी। बाद में ...
जब अंतरा ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे कुछ कुछ समझ में आया कि, कभी-कभी इंसान की परवरिश और उसके आसपास का वातावरण भी उसकी मानसिकता को अच्छा बुरा करने में बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं।
सुशांत के इस तरह स्वार्थी होने की वजह से उसकी परवरिश भी हो सकती है। और इसके अलावा अंतरा ने तो सुशांत को मन से प्यार किया था। और इस रिश्ते को उसने बहुत ही दिल से अपनाया था।
शादी से जुड़े हुए रिश्ते और जिम्मेदारियों को उसने बहुत अच्छे से निभाया था। और सबसे बड़ी बात कि अंतरा आगे भी इस शादी को निभाना चाहती थी।
हालांकि सुशांत के शब्द बहुत चुभनेवाले थे । लेकिन वह आगे से ना तो ऐसी कोई स्थिति आने देना चाहती थी और ना ही ऐसा कोई अपमान बर्दाश्त कर सकती थी।
अंतरा अब एक निर्णय पर पहुंचना चाहती थी।
क्रमश :