अच्छा हुआ यह सिर्फ सपना था ! मैं मन ही मन मुस्कुराया !
कश्मीर के ज़िक्र से ही मेरी आँखों के सामने गुलमर्ग-पहलगाम की दूध सी बर्फ़ से लदे पहाड़ों-वादियों की ख़ूबसूरती उभरने लगती है!
एक तेरह साल के छोटे से बच्चे ने अपनी जाती हुई अम्मा की आखिरी इच्छा पूरी कर दी थी और सब घरवाले अपने लाड़ेसर पर निसार हो र...
लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
इसी तरह से रोहन ने वो भूतिया फैक्ट्री और नंदू की आत्मा को मुक्त कर दिया।
कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था। फिर एक दिन अचानक खबर आई। एक बेटी ने सिटी हॉस्टल में फाँसी लगा ली, घरवालों की वजह से।