विभा के ना करने पर आभा वहां गयी जहाँ कार्यक्रम के कार्यकर्ता साहित्यकारों को निर्धारित शुल्क पर हर श्रेणी के सम्मान बेचक...
मैं खुद को बद्दुआ दे रहा था। लेकिन अब क्या हो सकता है। मैं अपना माथा पकड़ कर पूरे रास्ते चुप बैठा रहा।
एक जोरदार स्पीच लिखने बैठ गई ताकि उसके पति और बेटे कोई गलती न निकाल सके।
धीरे धीरे सभी समझने लगे हैं स्थिति की गम्भीरता
दोनों जब एक साथ कोई काम करती थी तो ज़बरदस्त होता था इसीलिए शायद लोग कहते है कि एक औऱ एक
इस तरह ग्रह नक्षत्रों के नाम पर दान करने से कुछ नहीं मिलने वाला है आंटी जी!