सिटकनी अन्दर से चढ़ाकर सामने ही रखी हुई आश्रम से मिली हरी किनारी वाली पीली साड़ी उठा ली।
कुछ फिर दरका, कुछ टूटा और फिर टीस वही पुरानी।
ज़िन्दगी को देखने का अलग नज़रिया
संवाद दो तरह के हो सकते हैं। एक संवाद होता है निष्प्रयोजन। दूसरा संवाद प्रयोजन से!
संवाद जो भरा था आकांक्षाओं से, जीवन दर्शन से और प्रेम से
मैंने देखा उसकी गर्दन की रेखाएँ हल्के से हिल रही हैं ।