विकास की बुनियाद हैं यही पुराने ,नए ,टूटे ,अधूरे और पूरे रास्ते ।
मैं सिर्फ धार्मिक कहलाना पसंद करता हूँ।
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
संतुष्टी मिलती है वह ही करा जाए तो ठीक है न तो भटक जाना सम्भव है।
समय सौम्या को दिया होता ? या उसे समझने का प्रयास किया होता तो ?
तू कर हर वो काम जो लगे नाक़ाम ताकि दुनिया भी करे तुझे सलाम।