रमाशोव के अकेलेपन की दास्तान है यह अंश। इस अकेलेपन में उसे मैं की परिभाषा और इससे इतर घूमते सारे विचार परेशान करने लगते ...
उन्होंने ज़मीन पर रखी अटैची उठायी और एक बार पीछे मुड़ कर देखा है मानो जो कुछ पीछे छोड़ आये हैं, उसे आखिरी बार विदा कर द...
ये शायद सुलेखा के लिए आज़ादी की सुबह थी पर रितेश की मुश्किलें इसी सवेरे से शुरू होने वाली थी।
फिर स्वाति सवाल करती है "अरे लेकिन तेरा वो निकम्मा आवारा शराबी लापरवाह मर्द क्यों छोड़ रहा तुझे। सारा दिन
अरे औरत जात पाँव की जूती होत है, और जूती पाँव में ही जंचत है, खोपड़ी पर नाय।
अपनी भावनाओं को निकल जाने दो