बधाई मनाते मनाते पृथ्वी का तापमान कहाँ पहुँचा चुके हैं।
हम चाहे कितना भी उसे प्यार दे सुख सुविधा दें लेकिन पिंजरे में कैद पक्षी कभी खुश नहीं रख
लेखक: विताली बिआन्की अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
जो कहीं ना कहीं हमें यही कह रहे हो कि इस सब का जिम्मेवार हम खुद हैं।
पूर्वज नाम का एक पहाड़ है जो मेरे घर के बाहर रहता है।
इसके बाद कीचू और पीचू जब अपने घर लौटे तो वह रंग बिरंगे पक्षी बन चुके थे।