खुद को शापित महसूस करता वह अपराध बोध से पीड़ित था।
लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
दो और लोगों को पकड़ने के लिए कदम उठाए गए हैं।
मुझे भरोसा तेरा माँ तू ही संवारेगी बिगड़ी माँ।