अस्सल में बात खत्म होने के बाद ही बात शुरू हो जाती है....आप को भी शायद इत्तेफ़ाक़ होगा...
बच्चे को पढ़ाने का सपना भी उसका पूरा हो सकेगा।
वो अगली शाम तक का इन्तजार नहीं करना चाहते वो चाहते है ये शाम ही चलती रहे।
बेबस रमा अपनी सास की आंखों में आंसू भर देख रही थी और क्या कर सकती है।
"और मुझसे भी अच्छा मेरा बेटा।" जिंदगी मुस्कुरा रही थी।