वैसे बोलेंगे, किसी का नहीं हैं जब मारो तो सब इकट्ठा हो जाते हैं
मैं सर्दियों के लिए भोजन इकट्ठा कर रही हूँ। बहुत काम पड़ा है
इस तरह के झगड़े में तमाशबीन हमारे स्कूल के लड़के लड़कियां थे
खोता बचपन, छिनती मासूमियत! आजकल के बच्चे तो अब बच्चे ही नहीं रहे
करस्तिल्योव की हुकूमत लेखक: वेरा पनोवा अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
उन्हीं दिनों उनके वयोवृद्ध पिताजी भी उनका साथ छोड़कर चले गये