बालक ही तो है, निराशा उसे मेरे आँचल की ओर खींच लाती।
खिड़की से आती सुनहरी, उजली किरणें पूरे कमरे में फ़ैल गयीं।
अब तो तुम्हारे भाई आ गया, अब तो बंद हो जाएगी ना तुम्हारी मम्मी की 'जनना फैक्ट्री'?
सिर्फ मनुष्य के जागृत विवेक के अवलंबन से ही, संभव हो सकता था।
मुझे लिखने की प्रेरणा जिन्दगी के मिटते हुए आखिरी कदम से मिली !
उसे अहसास हो रहा था कि जीवन शायद हर कठिनाई से हारे बिना चलने का ही नाम है।