“
शीर्षक-आत्मनिर्भर
मन की सोच का कहना
कभी खुशी की लहर,कभी दुख का
दरिया, कभी उदासी का आलम
कभी प्यार भरी तंरगो के रूमझुम
से सतरंगी हिचको ले, मन की
सोच पर किस का काबू,
मन के रहस्यों की बात बडी निराली
होती है।
अपने की तारीफों से दिल की जमी पर
हरियाली छा जाती है ।
कभी कभी मन की चोट कुछ
घाव को नासूर बना जाती है।
आत्महत्या जैसा भयानक
काम मन के टूटने से हो जाता है।
एक विचार आत्मघात का मन पर हा
”