STORYMIRROR

कल्पना रामानी

Inspirational

3  

कल्पना रामानी

Inspirational

ज़रा सा मुस्कुराइए (ग़ज़ल)

ज़रा सा मुस्कुराइए (ग़ज़ल)

1 min
834

है ज़िंदगी का फलसफ़ा, ज़रा सा मुस्कुराइये

बनेगा दर्द भी दवा, ज़रा सा मुस्कुराइये।  


विगत को क्यों गले लगा, बिसूरते हैं रात दिन

बिसार के जो हो चुका, ज़रा सा मुस्कुराइये।  


न कोई श्रम न दाम है, ये मुफ्त का इनाम है

जो रहना चाहें चिर युवा, ज़रा सा मुस्कुराइये। 


भुलाके रब की रहमतें, क्यों झेलते हैं ज़हमतें

रहम की माँगकर दुआ, ज़रा सा मुस्कुराइये।  


हिलाएँगे जो होंठ तो, खिलेगा चेहरा भोर सा

कटेगा दिन हरा-भरा, ज़रा सा मुस्कुराइये।  


विकल्प तो अनेक हैं, अगर खुशी अज़ीज़ हो

तो मान लो मेरा कहा, ज़रा सा मुस्कुराइये। 


जो शेष ज़िंदगी के दिन, जिएँगे हँस के “कल्पना” 

ये करके खुद से वायदा, ज़रा सा मुस्कुराइये। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational