ज़िंदगी तुझसे हारने वाले हम नही
ज़िंदगी तुझसे हारने वाले हम नही
खुली आँखों से देखती हूँ सपने
और खो जाती हूँ उनमें
इस दुनिया को भुलाकर
जी लेती हूँ पल में कई एहसास
भर लेती हूँ अनेक रंग अपने कैनवास में
कौन जाने, ज़िंदगी किस मोड़ पर
किस राह पर मिला दे मुझे मेरे सपनों से
पूरे ना हो ये ख़्वाब तो भी ग़म नहीं
दो पल की ख़ुशी हक़ीक़त से कम नहीं
टूटने के डर से छोड़ दे जो देखना सपना
ए ज़िंदगी तुझसे हारने वाले हम नहीं
गिर -गिरकर उठी हूँ, गिरने से कैसा डर
असफलताओं से सीखा है, कुछ खोया नहीं
मंज़िल की परवाह किसे अब
रास्तों को ही हमसफ़र बनाया जब