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Archana Verma

Others

3  

Archana Verma

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ज़िन्दगी का उपकार

ज़िन्दगी का उपकार

2 mins
355


अपने कल की चिंता में

मैं आज को जीना भूल गया

ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है

मैं उसको  जीना भूल गया

खूब गंवाया मैंने चिंता करके

जो मुझे नहीं मिला उसका

ग़म कर के

अपने कल की चिंता में

मैं अपनी चिंता भूल गया 

ज़िन्दगी  बहुत खूबसूरत है

मैं उसको जीना भूल गया


जब तक मैं आज़ाद बच्चा था

मुझे तेरी परवाह न रहती थी

सब रहते थे मेरी चिंता को

मुझे तेरी चिंता न रहती थी

पर जब मैं बड़ा हुआ

कॉलेज और किताबों में खो गया

पैर ज़माने की होड़ में अपना

आज़ाद बचपन भूल गया

ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है

मैं उसको जीना भूल गया


जब कभी अपनी बालकनी में

मैं एक प्याला चाय ले के बैठता हूँ

तेरी खूबसूरती देख कर

अपना दिल दे बैठता हूँ

सारी चिंता भूल जब मैं

जब तुझ को महसूस करता हूँ 

तू मुझ को धुली धुली  सी लगती है

जैसी नयी पोशाक में कोई प्यारी

सी बच्ची लगती है

तेरी मासूमियत देख के

मैं सारी चिंता भूल गया

ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है

मैं उसको जीना भूल गया


क्या मिला मुझे तुझ से जुदा हो के

जो नहीं है मेरे वश में उस कल

की चिंता कर के

रोज़ गंवाया मैंने तुझे हर

चाँद रातों में

जब मैं ऑफ़िस से आता था

और थक कर सो जाता था

कभी न सोचा मैंने 

तेरे साथ भी थोड़ा वक्त

गुजारूं

तू भी तो अकेली पड़ गयी

होगी मुझ बिन

तेरे साथ भी थोड़ी

गुफ्तगू कर लूँ

कुछ तुझ से सुनूँ, कुछ

अपने दिल की

कह लूँ

कभी तेरा हाथ थाम

इन चिंताओं से किनारा कर लूँ

तू मुझे अच्छे दोस्त की तरह

हर बार माफ़ कर देती है

तेरा बड़प्पन देख कर

मैं सारी चिंता भूल गया

ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है

मैं उसको जीना भूल गया


ठंडी हवा के झोंके सी

तू मुझ को राहत देती है

एक माँ के तरह तू मुझे

अपने गोद में सुला लेती है

नींद में ही सही मैं तुझ को

जी भर जी लेता हूँ

तेरा उपकारी हूँ मैं 

जो कुछ वक्त के लिए ही सही

मैं अपनी सारी चिंता भूल गया

ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है

मैं उसको  जीना भूल गया


कुछ वक्त गुज़ार कर तेरे साथ

मैं फिर इन्ही चिंताओं में

घिर जाता हूँ

और यही कहता रहता हूँ

अपने कल की चिंता में

मैं आज को जीना भूल गया

ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है

मैं उसको जीना भूल गया



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