यूँ ही अनवरत
यूँ ही अनवरत
वक्त बीतता जा रहा है अपनी गति से
गतिशीलता देखी मैने आज इस पेड़ में भी
जीने की ललक लिए बढ़ रहा है स्वयं को लिए
अपने शरीर को ढके हुए मानो पत्तियों से
भरा हो मानो मद में…
तने को स्निग्ध्ध पत्तियों से लपेटे हुए
मानो तने को सुरक्षित रखना हो
अपने अस्तित्व को लेकर स्वयं ही खड़ा है
शायद ही किसी की नजर पड़ती हो
भरा हो मानो मद में…
पेड़ के इस चलते जीवन चक्र पर
जहां व्यक्तियों का जमावड़ा तो है बस
इसके सौंदर्य को देख मोहित मात्र के लिए
कोमल तने की नसों को मानो ढाप लिया हो
भरा हो मानो मद में…
इसकी कोमलता लिए पत्तियों ने
रूखी सी पप्पड़ से भूमि के अनवरत सा
अपने जीवन क
ो लिए खड़ा है अटल मान
ढह जाएगा एक दिन अनजाने ही
भरा हो मानो मद में…
रह जाएगा सौंदर्य मात्र स्मृतियों में ही
मेरे साथ मेरी छवि में कैद इसकी छवि
मैं निहारूँगी इसको इसके बीते समय से
इसके सौंदर्य को मन मष्तिष्क में बसाए
भरा हो मानो मद में…
बारीकी से निहारती मैं इसके रूप सौंदर्य को
अचानक ही आहत सी इसके क्षणिक सौंदर्य से
रह जायेगा सब यहीं प्रकृति चक्र में फंस कर
बस जीना है अपने समय को प्रकृति के साथ
भरा हो मानो मद में…
खड़ा है तभी यह सीने को तान मानो
अभिमान अपने कद व सुंदरता पर
रह जाना है सब यही बस चलना है जीवन
न जाने कब तक..यूँ ही अनवरत..?
भरा हो मानो मद में…