Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Others

4  

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Others

युद्ध धर्म

युद्ध धर्म

1 min
190


इस धरा पर कोई धरा नहीं रहता

आवागमन का सिलसिला

चिरकालिक अटल अविचल

सार्वभौमिक निष्ठुर निरंतर

समेटे अपनी बाहों मे

जड़ चेतन एक समान

अतिलघु अतिकाय की अतिमान

गोचर - अगोचर , दृश्य - अदृश्य

फिर भी निरंतरता है

संबेदनशील परम्परा की

तलाश अनंत संभावना की

साझा वैचारिक विरासत की

अनसुलझी सियासत की,

युद्ध कभी समाधान नहीं रहा

लेकिन क्यों , फिर भी !

हर युग में अपरिहार्य बना रहा

धर्मयुद्ध का यूद्धधर्म

मिटाने के लिए

अनैतिक अतिरेकी सोंच को

बचाने के लिए

मानवीय मूल्य एवं विरासत को

कोई भी धर्म युद्व नहीं सिखाता

फिर भी युद्ध धर्म बन जाता है,

धर्म स्थापन के लिए

धर्मयुद्ध करना पडता है

सत्यमेव जयते स्थापन के लिए

कैसा होगा , सोचा कभी

घर्षनयुक्त संघर्षविहीन

नैतिकतामूलक समाज

सैनिक होगा हर कोई धर्मयुद्ध का

अधर्म कहलायेगा,

जरूरत से ज्यादा अपेक्षा

जरूरतमंद की उपेक्षा

संभव से कमतर प्रयास

खंडित होना किसी का विश्वाश

युद्धरत आम आदमी

परास्त करता निज अवगुण

बनाता जाता साझा सद्गुण

चलो एक पहल करें

सही दिशा में बढ़ चलें

चलना हो मुश्किल अगर

सही दिशा मे अपना मुँह मोड़ लो

युद्ध धर्म से खुद को जोड़ लो ।।



Rate this content
Log in