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Nikhil Thakur

Abstract

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Nikhil Thakur

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ये सहानुभूति क्या कहलाती है ?

ये सहानुभूति क्या कहलाती है ?

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ये मान लो कि हमने, कई सालों से अपने अंदर गंद भरा है

अब वो गंद मिल जुल कर एक मोटा, कला मार्कर बन गया है

धड़कनें कुछ अब भी चालू सी हैं

तो अच्छे - बुरे काम, नियमित रूप से हो रहे हैं।


बस जो स्याही चल रही है और जो निशान छोड़ जाएगी  

वो बेहद काली है

शर्म आती है मुझे कहते हुए

मगर सच है की ये स्याही हमारी है।


किताब हमारे जीवन की

और कहानियाँ हमारे बच्चों की

हम मोल - भाव कर रहे हैं ज़िन्दगी का

सोचकर कि..., खुद को बचा कर इंसानियत बचा रहे हैं। 


#हम अंधे हैं।


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