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Janvi Makhija

Inspirational

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Janvi Makhija

Inspirational

ये शान है, ये अभिमान है!

ये शान है, ये अभिमान है!

2 mins
320


देशभक्ति के रंगों में रंगने के लिए हो जाइए तैयार,

आज है, हमारे सभारत का राष्ट्रीय त्योहार


लहरा रहा है, वो जो खुले आसमान में वो है तिरंगा हमारा शान है, स्वाभिमान है हमारा

वो ही महासंगम, वो ही हिमालय है, वो ही हिंद की जान है, तीन रंगों से रंगा,

हमारे हिंदुस्तान की का मान है,गूँज रहा है गली-गली में, एक ही मान वो है ती तिरंगा हमारा; तिरंगा हमारा


जिक्र जब इस मिट्टी का होगा, तो नाम महात्मा गांधी, माजाद, भगत सिंह जैसे वीरों का बहोगा का

इन शहीदों के प्राण और त्याग को हम बर्बाद

होने नहीं देगा, इस ऊर्जा की श्याम तुम कभी होने न देंगें,आवादी के।

हर आखों में खिलेगा या एक ही नूर, आजादी के अमृत महोत्सव को मनाने का जनून इस पवित्र मिट्टी में न जाने कितने लहू।


गिते है, जो दार का इरादा नहीं, जीन का संघर्ष लेकर

आँखों में तक्ष्य क्रांति का दिल मे दर्ष लेकर खड़े है। प्रवाह स्का न जाए सौ-करोड़ों लोगों के दिल मे लहराना, यह तिरंगा कभी कोई झुका न पाए।


छापी है पवन उस लहू से उन शहीदों के जो लौटकर आए स्वर से "

पर जान सीमा पर त्याग आए, जो गिट्टी की कीमत जानते है, उसे अपनी जान मानते है।


जो वजन की रक्षा कर रहे हैं, फिर चाहे दिन हो या रात

धूप हो या बरसात, ती ताते सीना ठंडी रात में भी वे मौजूद खड़े हैं।


सदेंगे गोतियों गोलियों का बौछार वतन के खातिर,

हर दर्द को इसकर करेंगे स्वीकार रा बहना खून सड़क पर जब तक जन्म न जा


हाथों से बडूक उनकी छूट व पाए, केसरिया की ज्ञान के खातिर,

कुर्बान कर दी है अपनी खुशियाँ सारी "दरे-भरे लहड़ाती सृष्टी के खातिर, मंत्र निरंतर मन में, 'देश के काम आता है।" गूंजना है।


जब तक तब तक समा न जाए सफेद चाचल में सीमा पर चक्कर दे रहे हैं।

यह है हमारे राष्ट्र के सिपाही,यह है


इस मातृभूमि के शहीद

यह है इस स्वर्णभूमि के मान


इस कर्म भूमि की के अभिमान

न भूले न भूल पाएँगे इन वीरों की कथा


जो हर पल सिखा दे जाएँगे हमें,इस


ताकि मिट्टी का संदेश


भूल न पाए हम,जो अब थी तिरंगे में लिपट कर जा रहे हैं, वतन के सहारे अपने जीवन त्योछावर कर रहे हैं। इस स्वर्ण आजादी की मुबारक आप सभी को,


अब आज जब भी कोई पूछे,

का दिन क्या है? आजारी क्या है?


तो कह न देवा छुट्टी का दिन है, कहना मेरे प्र प्यारे मित्र,

वह गुरूर का दिन है तेरा-मेरा देख कर तिरंगा, उस आत-मान-सम्मान का लहराना


खुद को समझना स्वाभीमानी, क्योंकि न जाने इस कपडे को कितने लहू ने रंगा है।



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