ये रात
ये रात
हँसता हुआ दिन तो गुजर जाता है,
पर सिसकती रहती हैं रात,
दिन भर हँसती रहती है जो आँखें,
भीगी पलकें समेटे कई अश्क,
सोती रहती हैं रात
दिन भर ये लब कितना कुछ बोलते है ना,
ये दिल क्यों चुप्पी साध लेता है ,
ये सुनसान सी रात
दिन भर कितना कुछ सुनते है शांति से,
फिर क्यों दिमाग शोर मचाता है,
यूँ आधी आधी रात
दिन भर तो जीती हुई लगती हैं साँसे,
फिर क्यों मध्यम पड़ जाती हैं ,
कि आहें भरती है रात
दिन तो ठंडी हवा सा गुजर जाता है,
पर सुलगती रहती हैं क्यों रात