ये कौन सी गली है I
ये कौन सी गली है I
दिन के उजाले की आस में
चला था बड़े भोर से I
सिमटती नहीं ये रातें काली है।
बीते दोपहर की चुभती किरणें
झपटता शेर भागती थकती हिरणें
मैं न थका कल सुबह होने वाली है ।
ले दंभ दुनिया बसा क्यों नहीं लेता
मैं नासमझ ज्ञान क्यों है अब देता
मैं क्या समझूँ, तेरी समझ निराली है I
कोसता चला मंजिल डगर से पहले
मुझ सा कई किसी के दिल बहले।
सोचता हूँ मंजिल की ये कौन सी गली है।