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Avinash Kumar

Abstract

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Avinash Kumar

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ये जो बारिश है

ये जो बारिश है

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अभी हुआ मेघ-

धारासार...

मूसलाधार...

लगा -

जैसे-

छिद गया हो....

एक बड़ा- सा..

बहुत बड़ा- सा...

गुब्बारा!


जैसे -

पानी से भरे...

किसी बड़े से.....

धूसर पॉलिथीन की....

पेंदी में चुभ गया हो जैसे....

कोई बड़ा - सा पेड़!!


अभी......

हाँ, अभी.....

पेड़ ही तो बरसा है!

बरसे हैं पौधे!

बरसी है उमंग!

प्यासी धरती की।


या...

बरसी है कृपा!

जैसे.....

साक्षात् ....

शिव ने खोल दी हो,

जटाओं की एक-एक लट!

गंगा को धरती पर उतारने !


हाँ, ये गंगा ही तो बरसी है !

बेचैन मन को....

शांत करती हुई.....

झमाझम बरस कर गई हो जैसे !


और दाँत खीरता हुआ सूरज....

किसी उद्दण्ड बच्चे की तरह....

मुँह चिढ़ाता, दौड़ गया

अपने घर की दहलीज़ तक !


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