ये जब शाख़ों पे उतरते हैं
ये जब शाख़ों पे उतरते हैं
ख़त अपनी उड़ानों का
हमको सुनाते हैं
ये पंछी जब
शाखों पे शाम ढले उतरते हैं !
जिसमें रब राज़ी !
उसमें सब राज़ी !
इत्ता सा ही तो कहा करते हैं !
नन्हे-नन्हे ये जिस्म सारे
तूफानों से कहां डरते हैं।
ख़त अपनी उड़ानों का
हमको सुनाते हैं
ये पंछी जब
शाखों पे शाम ढले उतरते हैं !
जिसमें रब राज़ी !
उसमें सब राज़ी !
इत्ता सा ही तो कहा करते हैं !
नन्हे-नन्हे ये जिस्म सारे
तूफानों से कहां डरते हैं।