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Rashi Saxena

Abstract

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Rashi Saxena

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यादों की सहेली

यादों की सहेली

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बैठी हैं नदिया तीरे

लेकर सब सब अपनी अपनी

यादों की गठरी

कुछ पीड़ा के कुछ प्रेम के 

कुछ सपनों के कुछ अपनों के


कुछ बेगाने पल दिन 

आओ सहेली बाँट लें

यादों के वो पल

कभी मिला अपनापन 

कभी जिसमे दुत्कार थी


कभी पिता की शाबाशी 

कभी माँ की फटकार थी

कभी पति से स्नेह प्राप्ति 

कभी बच्चे गोद में

कभी जीवन में समस्या अपार थी


याद करो सखी वो भी लम्हे 

सब से उम्मीदें हज़ार थीं

आज निहारो दूर तलक भी

कोई नहीं पास अपने


कभी अपने आस पास 

खुशियों की बहार थी। 


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