यादों की नयी सुबह
यादों की नयी सुबह
गया वक्त जो अक्सर गुजरता
नहीं तमाम रात थोड़ा
हँसा कर थोड़ा रूला कर
अपनापन जता गया
जाते जाते कह गया
मैं यही हूँ तेरे साथ
फिर कभी तन्हाइयों में
दस्तक दे जाऊँगा
जब कभी तू अकेला हो
तेरे साथ ठहर जाऊँगा
तुझे अपने आज में जीने
का हुनर सीखा जाऊँगा
तू मेरे काँधे पर सर रख
कर रो लेने जी भर
जब सुबह होगी तुझे
नयी उम्मीद दे जाऊँगा
यहाँ तमाम ऐसे भी है जिनकी
किस्मत तुझ जैसी भी नहीं
जो तुझ मिला वो उनकी
किस्मत में दूर तक भी नहीं
तुझे हौसला है खुद को
सँभालने का
कुछ खुद के लिए और कुछ
दूसरों के लिए कर जाने का
तू हिम्मत बाँध फिर खड़ा हो
अपनी ज़िन्दगी फिर संवारने के लिए
बीती ज़िन्दगी से सबक ले के
एक नयी कहानी लिखने के लिए
गया वक्त मुझे ये सब सीखा गया
थोड़ा हँसा कर थोड़ा रूला कर
अपनापन जता गया....