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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Others

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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

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यादों की देवी

यादों की देवी

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मन मंदिर की चौखट पर ही,यादों की देवी रहती।

कभी हँसाती कभी रुलाती,जीवन के सुख-दुख कहती।।


रेतीले बचपन की लौरी, माँ बनकर वह गाती है।

दादी की लाठी की आहट,आँगन में सुनवाती है।।


गुड्डे-गुड़ियों के दिन प्यारे,छवि फिर से दिखने लगती।

मैं यादों की सोनपरी सँग, रात-रात भर हूँ जगती।।


बड़-पीपल की छाँव घनेरी,यादों की रानी लाई।

यौवन की मृदु चंचलता को,देख तनिक मैं शरमाई।।


मेरे गीतों के सुर साधक,प्रीतम मधुरिम यादों के।

मजबूरी थी मिलन कि या फिर,तुम झूठे थे वादों के।


भँवरे ने था फूल खिलाया,चुरा गया जिसको कोई।

यादों की देवी के प्यारे,जो होनी सो ही होई।


कंटक वन देवी बनकर वो,शूल चुभाया भी करती। 

मेरी आँखों में आँसू बन,झर-झर मुझ पर ही झरती।।


सुता शारदे की भी लगती,लगूँ बावली बूच कभी।

जीवन के लम्हे सतरंगी,बसे याद की गोद सभी।


हे यादों की रक्षक देवी,दुख क्यूँ याद कराती हो?

हार-हार कर मैं जीती हूँ, फिर क्यूँ मुझे हराती हो?


प्रौढ़ हुई पर बचपन यौवन,हँसकर ह्रदय लिपटता है।

हे फूलों की देवी तुझमें,जीवन सार सिमटता है।।


शुचि वंदन तेरे चरणों में,वास सदा अपना रखना।

जीवन के खट्टे-मीठे से,अनुभव सारे ही चखना।।



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