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Kajal Singh

Abstract

4.7  

Kajal Singh

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यादों का सफर....

यादों का सफर....

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बचपन बीता खट्टी मीठी यादों में, खेला करते थे जब हम खुले मैदानों में

परियों की सुनीं कहानियों में, उनसे जुड़े सवालों में

मनचाहे सपने बुनते, इनकी उनकी सबकी सुनते

कभी लकड़ी की काठी गाते, कभी एक बट्टे दो गुनगुनाते

कभी खेल में बनते सिकंदर, कभी मदारी नचाता बंदर

कभी पतंग की लड़ी पकड़ते, कभी स्टैचू बनके खड़े होते

कभी खेल खेल में मारते छक्के चौके, आज हम छोड़ रहे छोटे छोटे मौके

फुटबॉल तो कभी रग्बी से करते गोल, वो यादें भी थी कितनी अनमोल

सचिन कभी धोनी का किरदार निभाते, कभी कपिल देव बन खुद कप्तान हो जाते

रोनाल्डो कभी मेसी पर बेट लगाते, हारते जीतते सबको मनाते

कभी रहते थे बैटमैन सुपरमैन के वहम, आज न जाने क्यों छोटी सी हार से जाते सहम

आज यादों की कश्ती में बनके रह गई सिर्फ ये बातें

कभी लुका छिपी, कभी बर्फ पानी के मोड़ मे

आज भाग रहे जिंदगी की दौड़ में



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