यादों का कफ़न
यादों का कफ़न
आज फिर वो यादों का कफ़न हटाने आया है
बीती हुई बातों को वो फिर से दोहराने आया है
कहीं ये मेरी जिंदगी की ट्रेन का मुसाफिर तो नहीं
जो वक़्त वक़्त पे स्टेशन बदलने आया है
मत भूल ऐ- मुसाफिर , में जीव हूँ अजीव नहीं
जिसके दिल को फिर तू दर्द की चादर उड़ाने आया है
कहीं तूने मुझे आसमान तो नहीं समझा
जो टूट-ते हुए तारे से अपनी जिद्द पूरी करवाने आया है
तो याद रख में परवरदिगार नहीं , एक मामूली इंसान हूँ
जिसकी भावनाओं का तूने अपनी महफ़िल में मजाक उड़ाया है
ताज्जुब होता है , मुझे दर्द देते- देते तू थका नहीं अब तक
या खुद को दर्द होने से , मुझपर बौखलाने आया है
तेरे कहने से गैरो से माफ़ी मांगी वो हीर और थी रांझे
आज तू अपना दामन खाली ले जाने आया है
आज फिर वो यादों का कफ़न हटाने आया है
बीती हुई बातों को वो फिर से दोहराने आया है