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Mani Loke

Others

4  

Mani Loke

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यादें

यादें

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ठंड में ठिठुरता बुढ़ापा सोच रहा था,

अपने सोये हुए बचपन के सपनों को खोज रहा था,

पाने और खोने के बीच गुणांक वो कर रहा था,

ठंड में ठिठुरता बुढ़ापा सोच रहा था,   

ठंड बढ़ती गई वह सोचता गया था,   

ठंड में कभी कभी ठिठुरता भी गया था,  

पाया जो उसने उस पर भी सोचा था,   

खोया जो उसने उसपर भी रोया था।

बचपन के ठंड की याद फिर उसको आयी थी,

बचपन के ठंड की जो बात याद आयी थी,

रज़ाई में छुपने की बात याद आयी थी,   

वो पढ़ने से जी चुराना, वो जल्दी से सो जाना, 

बड़ों को सताना, दुलार उनका पाना।

बचपन के खेल का, लुत्फ पूरा उठाना।

इस दौर के ठंडे दिन कुछ और थे

किताबों में लिपटे सपनों को संजोए थे।  

उस ठंड में नौकरी पाने की ललक थी, 

मिलने पर पैसा कमाने की कसक थी।

उस ठंड की हवा कुछ यूँ लहराई थी,

बचपन से बड़प्पन की याद फिर से आई थी,   

उस ठंड से एक बार फिर जो बुढ़ापा ठिठुरा था,   

आग जलाने से पत्ता भी कुम्हला था, 

हाथ तपे फिर हुई याद ताजा थी।   

खुद के बच्चों से हुई ,फिर से आशा थी।  

एक बार फिर बच्चों सा बन उनको पाला था । 

तो इस बार, दोस्तों सा ,दिया उनको सहारा था । 

उम्र ढली फिर से जो ठंड आया था,

उसी ठंड में बुढ़ापा सोच पाया था,

क्या सोचा था उसने क्या उसने पाया था,

बीते हुए ठंड का हिसाब उसने लगाया था,

ठंड में ठिठुरता बुढ़ापा सोच पाया था,

अपने जीवन का सारांश उसने पाया था ।।  


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