व्यथा एक किसान की
व्यथा एक किसान की
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चलो !आज व्यथा सुनाती हूँ
मेरे गाँव के एक किसान की
उसके खेत की, खलिहान की
उसके ही देश में उसके हार की
जिस किसान से ये देश चलता है
उस किसान को यहाँ कौन पूछता है
कहते है भारत किसानों का देश है
पर यहाँ तो भ्रष्टाचारों की ऐश है
किसानों को बस इतना ग़म है
आम जनता भी यहाँ क्या कम है
50 रूपये वाली मूवी 500 में देखेंगे
मोल -भाव कितने ही करवाकर
आलू -टमाटर आज भी 5 रूपये
में ही खरीदेंगे
ये कैसा शासन भारत सरकार चलाती है ?
महँगाई की मार भी ये किसान ही खाते हैं
पल -पल बदलता ये शहर
उस पर प्रकृति का कहर
कभी बाढ़ तो कभी अकाल
उसमे भी बेचारे किसानों की ही हार
पल -पल बहते जाते उसके नेह
आत्म -हत्या की ओर बढ़ती उसकी देह ....