वसंत विरह
वसंत विरह
हे प्रिय ! ऋतु वसंत की मादक भोर
सुगंध तोरी बैठ मरूत तैरत चहूं ओर
पुष्प वृक्ष पर भाँति भाँति रंग चढ़त
बेरंग मोरी काया प्रिय गए तुम छोड़
कुहके पंछी गावत कोयल सुन वन में
सुध बुध खो बौराई टीस उठे मन में
स्वप्न देख मिलन के नस नस दहके रे
विरह आग अंतस भरे प्रिय बिन जीवन में
पूछे सखियाँ मोरी प्रिय गए तुम्हरे कहाँ
नैनन में लाज भरे तुम बिन हम बैठे यहां
कौन धाम जाकर बसे तुम, सौतन ये वसंत है
लोगन का प्रिय वसंत अब प्रिय बिन मोरा अंत है।