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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

"वर्तमान"

"वर्तमान"

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"वर्तमान"
बड़ा ही उद्वेलित सा मेरा यह मन है
भीतर चल रहा विचारों का गगन है

अब क्या होगा,अब क्या होगा,प्रभु
सोचकर गंवा रहा,व्यर्थ ही अमन है

वर्तमान का छोड़ दिया,इसने धन है
भविष्य का पाना चाह रहा,बदन है

कितना नादान,मूर्ख,पागल मन है
कभी भविष्य के लिये करे,क्रंदन है

कभी भूत के लिये करता,रुदन है
जबकि,दोनो न पहन सकता वसन है

छोड़ न,भूल भी न दोनो के करतब है
शिक्षा ले भूत से,जिसने दी चुभन है

कर्म करता रह,यूं वर्तमान में मन है
वर्तमान शूल बीच खिलेगा सुमन है

फिर देख कैसे सुंदर न होगा चमन है
व्यर्थ का उद्वेलित होना छोड़ मन है

वर्तमान का ले,तू बस भरपूर आनंद है
वर्तमान से होगा,भूत दुःख बर्हिगमन है

वर्तमान से खिलेगा,भविष्य निधिवन है
वर्तमान बगैर अधूरा साखी जीवन है

दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"


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