वक़्त
वक़्त
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अपने ही घर में अब जो तुम्हारा मन नहीं
लगता कोई तो घर में है जिसे अब यह घर नहीं लगता।
दिल बहलाने को कहानियां बुनने में क्या बुरा है
यहाँ तो झूठ कहना भी किसी को बुरा नहीं लगता।
तुम्हारे दर्द में उसकी नाकामी थी यह क्या गिला हुआ
उसे तुम्हारी बातों का अब कोई दर्द नहीं लगता।
मंजिल का पता फ़ौत होने से पहले लग ही जायेगा
जमाना-ऐ-ख़राब को फ़ौत होने में वक़्त नहीं लगता।
तारीख़ के पन्नो में अब भी किसी अपने को खोजते हो
बदलते मौसम में तारीख़ बदलते वक़्त नहीं लगता।