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Neha Pandey

Others

5.0  

Neha Pandey

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वक़्त के निशान

वक़्त के निशान

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कैसे भुला दूँ मैं बातें

अपने अतीत की,

मेरा आज याद

दिलाता है 

मुझ को गुज़रे

हुए वक़्त की।


मेरा अतीत मौक़ा

देता है मुझ को 

वर्तमान में संभलने

के लिये,

हजार गुस्ताखियों का

हिसाब देकर

मशवरे देता है

भविष्य के लिये।


वक़्त का खेल 

आँख मिचौली जैसा है ,

छिपते - छिपाते जिंदगी 

गुज़र जाती है,

खेल कोई भी हो

हर हाल में जीत 

उसी की होनी है।


कैसे कहूँ मैं 

अतीत अब परे है ,

मुझ में तो आज भी 

अतीत के निशान

गहरे हैं ।



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