वो समंदर है इश्क़ का
वो समंदर है इश्क़ का
दो दिलों पर आज आसमाँ वाला भी मेहरबान है।
देखिए बेहिसाब हसरतों का कारवाँ चलायमान है।
दो अजनबी प्रेमपाश में यूँही तो नहीं बँध जाते,
जन्मों की राब्ता को मिलती , एक नई पहचान है।
नज़र से रूह का सफ़र कर लेता है , वो अजनबी,
लम्हा पहले जो इश्क़ की गलियों से अनजान है।
हथेलियों पर आयत सी है महबूब का नाम लिखता ,
आईना-ए-दिल में वो चेहरा दिखें यही अरमान है।
दरिया सी तय कर लूंगी 'दीप' मैं पहुँचने का रास्ता,
वो समंदर इश्क़ का, लहरों सी हसरतें बेहिसाब है।