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Utkarsh singh

Abstract

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Utkarsh singh

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वो शांत लड़की

वो शांत लड़की

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वो बैठी है जो शांत सी बहुत कुछ कहना चाहती है

चेहरे की बेबसी उसकी, फफक फफक कर रोना चाहती है


जरूरत नहीं है उसे शायद किसी गैर और न किसी अपने की

मजबूत है वो, मगर जनता हूँ, वो भी टूट कर बिखरना चाहती है


चल रही गजचाल वो, मंजिल बड़ी पाना चाहती है

थक गयी है थोड़ा बहुत साथ एक हमसफ़र चाहती है


आता है उसे बखूबी अपने आँसुओं और बेबसी को छिपाना

वो झाँकती उदासी माथे से उसके, दर्द बयां करना चाहती है


सुनती है हरवक्त वो सबकी कभी वो भी सुनाना चाहती है

टुकड़े है जो अरमानों के बिखरे हुई समेटना उन्हें चाहती है


बद्तर तो नहीं है जिंदगी उसकी, ख़ालीपन है शायद

चंद पल वो महबूब संग, ढलते सूरज को देख बिताना चाहती है।


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