वो रास्ता किसी घर नहीं जाता है
वो रास्ता किसी घर नहीं जाता है
कितना ही समेंटू यहां से वहां से हर जगह से
अंदर कुछ न कुछ छूट जाता है
यूं तो मना लेती हूं में सबको मगर
मुझमें ही मुझसे कोई रूठ जाता है
मैं समझी तुझे कितना आसान जिंदगी
पर तूने ही सिखाया कि जोड़ने वाला ही
अकसर बुरी तरह टूट जाता है
हूं खुद में इतनी उलझी और पूछती हूं जमाने भर में
कि मुझे कोई मुझ सा समझ क्यूं नही पाता है
कहना तो बहुत कुछ है पर ये काफी नहीं लिखना
न समझो और समझाओ मुझे कि जिस राह पर हूं
वो रास्ता किसी घर नहीं जाता है।