Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Karishma Gupta

Abstract

4  

Karishma Gupta

Abstract

वो रास्ता किसी घर नहीं जाता है

वो रास्ता किसी घर नहीं जाता है

1 min
400


कितना ही समेंटू यहां से वहां से हर जगह से

अंदर कुछ न कुछ छूट जाता है


यूं तो मना लेती हूं में सबको मगर

मुझमें ही मुझसे कोई रूठ जाता है


मैं समझी तुझे कितना आसान जिंदगी

पर तूने ही सिखाया कि जोड़ने वाला ही

अकसर बुरी तरह टूट जाता है


हूं खुद में इतनी उलझी और पूछती हूं जमाने भर में

कि मुझे कोई मुझ सा समझ क्यूं नही पाता है


कहना तो बहुत कुछ है पर ये काफी नहीं लिखना 

न समझो और समझाओ मुझे कि जिस राह पर हूं

वो रास्ता किसी घर नहीं जाता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract