वो नज़र में रहता है
वो नज़र में रहता है
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साथ साथ चलता सफ़र में रहता है
सूरज सा चमकता सहर में रहता है
ख़ार बन के चुभता है अब दिल में
जो फूल सा कभी शज़र में रहता है
वो गया दूर भी तो कुछ इस तरह
आज भी तो मेरी नज़र में रहता है
जाऊँ अब मैं दुनिया में कहीं भी
अक्स उसका हर शहर में रहता है
दिखता है हर शय में उसका चेहरा
अब वो शख़्स हर बशर में रहता है
गुमशुदगी का इश्तिहार दे न सके
वो छपता नहीं पर ख़बर में रहता है
ज़िक्र तो नहीं आता है अब उसका
मगर हर काफ़िये बहर में रहता है
बशर ...इंसान
शज़र.... पेड़
सहर…...सुबह
काफ़िया.. ग़ज़ल की तुक
बहर.... ग़ज़ल मीटर