वो मेरी एक भी नहीं सुनती थी...
वो मेरी एक भी नहीं सुनती थी...


मुझ पे जान निसार करती थी,
बेपनाह प्यार करती
थी,
पर बयान करने से
जाने क्यों
डरती
थी,
वो मुझपे मरती थी,
शायद इसीलिए
वो मेरी एक भी नहीं सुनती थी।
मुझसे हमेशा वो
सच -सच बोलती थी,
दिन -रात मेरी
परवाह भी
करती
थी,
मेरी नाराजगी को
देखकर,
खुद उदासी के
दौर से गुजरती थी,
दिल में मेरी
मूरत रखती थी,
शायद इसीलिए
वो मेरी एक भी नहीं सुनती थी।
मुश्किल हालात में
मेरा हौंसला
बनती थी,
मेरे आँसू को
वो झट से
पोछती थी,
मेरे ना खाने पर
खुद भूखी सोती थी,
दर्द मुझे होता था
तो वो रोती थी,
मुझ पे खुद को
कुर्बान करती
थी,
शायद इसीलिए
वो मेरी एक भी नहीं सुनती थी।