वो बीते दिन
वो बीते दिन
क्या गज़ब थी वो बीते दिनों की याद
ना कोई चाह ना कोई फरियाद
खिलाते थे पराए भी अपने गोद में लाद
बेहिचक सा था वो बचपन का अंदाज
थी गज़ब की खुबसूरती गज़ब का साज
आसानी से अपनाना किसी का भी प्यार
कितनी गहरी लगी ये समय की वार
बीते सुनहरे दिन छूटें सारे यार
अब ढूंढता है दिल वो बचपन का प्यार
जब नासमझ से चले जाते थे चाँद के पार
था अलग ही मौसम दूसरा ही संसार
कितनी सीख भरी होती थी वो माँ की मार
बीते दिनों की वो अनोखी लहर थी
ना जाने कहाँ मैं खोई बेखबर थी
था कौन सा गाँव कौन सी वो शहर थी
अंजाना शहर अंजानी सी डगर थी
सपनों का महल सपनों की पहर थी
सपनों की परी मैं उड़ने को चली थी
था खुद पर गुमान बड़ी ही हसीं थी
थी कितनी मासूमियत
कितना बड़ा होता था हैसियत
छोटी सी ही बात
बन जाती थी बगावत
थी नन्ही सी जान
पर था गोरेपन का भान
अब आता है क्षेप
था कितना अभिमान
रंग बिरंगी तितलियों के पीछे भागना
खुशबुओं से सने मिट्टी पर दौड़ना
टिमटिमाते जुगनुओं को पकड़ना
और हवा में झूमते पेड़ो से बाते करना
कितना अविरल था वो भोला सा स्वभाव
बारिश में बहाना कागज़ का नाँव
नाजुक सा पकड़ना किसी का भी हाथ
कितना सरल था बेजुबानों का भी साथ
बोलना बिना रुके हँसना बिना सोचे
गज़ब ही हैं ये यादों के झोंके
उन बीते यादों के सुगंध आज भी हैं अनोखे...!