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Navin Madheshiya

Others

4.8  

Navin Madheshiya

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वो बचपन के दिन

वो बचपन के दिन

2 mins
333


वो बचपन के दिन सपनों

जैसे झिलमिल याद आती है

वह कहानी मम्मी की ज़ुबानी

क्या थे दिन, क्या थी रात 


माँ की कही हर वो बात

याद आती है

माँ अब तुम कहां हो मेरे पास

आ जाओ

माँ के हाथों की बनाई रोटी 

माँ के हाथों की बनाई मिठाई

याद आती है


वह बचपन के दिन सपनों जैसे

झिलमिल याद आती है माँ की

बहुत याद आती है 

माँ के हाथों के सिले शर्ट बहुत

याद आती है 

माँ अब तुम कहां हो मेरे पास

आ जाओ 

वह बचपन के दिन सपनों जैसे

झिलमिल याद आती है वो माँ के

साथ बिताए हुए पल

 

वो बचपन का एक-एक पल

जब माँ के साथ खेला करता था

लुका छिपी

तब ना देखी थी उसके चेहरे पर

मायूसी 

हमारी खुशी में अपना दर्द छुपा ली

हमारा दर्द अपना बना ली

क्या ऐसी होती है माँ

या हो तुम सब माताओं की माँ

तुमने जब मुझे दुनिया की बात

समझाईमैंने की थी तुम्हारी खूब

खिंचाई


दुनिया की बुरी आंधी जब तक

मुझ तक पहुँचती उससे पहले ही

तुम मुझे अपने आंचल में छुपा लेती

ना था मालूम तुम्हें भी कष्ट होता है 

यही सोच कर मेरा मन रोता है

ना जाने फिर कब मिलोगी माँ

मिलोगी या फिर दूर रहोगी माँ

 

ना की थी ऐसी भूल

जो तुम चली गई इतनी दूर

मुझे अब अपनी गलती खटकता है 

इसलिए यह मन सिसकता है 

ना यूं हमको तड़पाओ 

हे माँ तुम वापस चली आओ


अब तुम केवल यादों में रह गई

है माँ तुम कहां छिप गई 

खोजता है ये मन वो दीवारें,

गलियारे सभी 

जैसे गुजरी हो तुम यहां से अभी

हे समय तुम थोड़ा ठहर जाओ 

माँ तुम कहां हो वापस चली जाओ 

माँ तुम कहां हो अब वापस चली आओ 

तुम्हारी पढ़ाई गई गिनती, पहाड़े याद है 


मैं जो बचपन में करता था ग़लती

वो शरारतें याद है 

मैं अब वह शरारती नहीं करता हूं 

तुम्हारी बात को मैं एक सीख समझता हूं

हे माँ तुम कहां हो वापस चली आओ

 बचपन के दिन सपने जैसी झिलमिल

 वो बचपन के दिन सपनों जैसे झिलमिल


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