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Rishabh Tomar

Romance

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Rishabh Tomar

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वो आई पर नहीं आई

वो आई पर नहीं आई

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वो सर्द रात फिर नहीं आई

उनको हमारी याद नहीं आई


मुद्दतों से उनकी खोज में हूँ

उनकी कोई खबर नहीं आई


रात को मिलने आना था उन्हें

पर वो घर के बाहर नहीं आई


करके वादा वो तो चली गई 

तब से फिर वो इधर नहीं आई


चाँद रातों को चुभता रहा हमें 

शायद इसलिये नींद नहीं आई


खाट बदल बदल गुजारी रातें 

फिर भी रात भर नींद नहीं आई


लाख चाहा था मिन्नतें कर लूँ

वो कली फिर नजर नहीं आई


गालियाँ उदास गुम रहने लगी

वो परी जब नजर नहीं आई


कुदरत को जाने क्या मंज़ूर है

दिल में आई पर घर नहीं आई


मर मर के जिया हूँ अब तक ऋषभ

वो रोज़ आई पर नहीं आई



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