वक्त
वक्त
वक्त में अपने लिए वक्त ढूंढती हूं
वक्त के हर लमहे से वक्त पूछती हूं।
कौन बनेगा मेरा अपना लम्हा
किससे साझा करूंगी मैं अपना हर किस्सा।
हर लम्हे को खूब झंझोड़ती हूं
दर्द की आहटों को तोलती हूं।
उल्टे कदमों पर अपने निशान खोजती हूं
खुशी का वह मंजर सोचती हूं।
हर कृंदन का मंथन कर खुद को सहेजती हूं
फिर वक्त के साथ खुद को वक्त पर संभालती हूं।
वक्त में अपने लिए वक्त ढूंढती हूँ।