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Bhavna Thaker

Tragedy

4  

Bhavna Thaker

Tragedy

वक्त का पहिया

वक्त का पहिया

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"हताश न हो वक्त महज़ सुस्ताए शांत पड़ा है, इंसान की रफ़्तार के आगे ज़रा थक सा गया है"


आहिस्ता-आहिस्ता उदय होते समय का सूरज कभी तो मध्यान्ह तक पहुँचेगा मंथर चाल को गतिशील करते अवाम के आमंत्रण पर वेग से बहता पुकार का प्रभंजन देते हर शै पर राज करेगा...


हरते क्रंदित विश्व की पीड़ा भूमि पर वास करेगा, स्वप्न लोक के आदी संसार में नव उच्छ्वास भरेगा, गूढ़ अर्थों से भरी पड़ी है पटल पार कई गंगा, कर्ण है उत्सुक नयन अपलक फफककर जो फूट जाते रत्नागाह के बंद किवाड पल भर में खुल जाते..

 

भोर अलौकिक नवयुग की शीघ्र बदलती भाग्य जगाती हर आंगन में खिलेगी,

सबकुछ ठहरा हुआ जो आज है एक दिन चल ही पड़ेगा, वक्त का पहिया चलते चलते उस मंज़र पर रूकेगा उद्भव होते हर इंसा की जिह्वा जहाँ ठहरी है, नवसूरज की धूप को चूमते विश्व का रथ एक बार फिर दौडेगा।



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