विवाह
विवाह
विवाह..... मंगल परिणय, स्नेह सूत्र
संयोग सुखद संयोग, सहज समर्पण
दृढ़ विश्वास का सरल समीकरण
स्नेह की अपार बूंदों से भरा सागर
जिसमें उठती - गिरती लहरों समान
भावनाओं का घटता - बढ़ता ज्वार
कभी शांत, कभी तूफान,
फूल सा नरम तो कभी पत्थर कठोर
आवश्यकता है तो बस आपसी सामंजस्य की
धैर्य की परीक्षा है, इसकी गरिमा बनाये रखने की
हर परिस्थिति में स्वयं में संयम, दोनों ही रखें
दोनों एक -दूसरे को सम्मान से देखें
बस यूं ही पूरी हो जाए, इक - दूजे की आशा
और " विवाह " को मिल जाए.....
उसकी सच्ची परिभाषा।