विकास
विकास
गाँव के विकास में,
भेंट चढे ।
टेडे मेडे, गोबर के
आधे आंगन से,
सिमेंट के रास्ते ने कहा।
"सुन रे !
उज़डे हुए बहार के,
टूटे हुए चमन।
सुना कभी था,
तेरा था दम खम।
भरा रहता था,
रिश्तेदारों से आंगन।
होती थी,
सुख दु:ख की बाते।
चैन से कटते दिन,
चैन से कटती राते।"
आंगन ने कहा,
"हां भाई,
मैं विकास के भेट चढा ।
अब तु हो गया,
मुझसे बड़ा।
तुझमें जो है अकड़,
वह तुझ पर चलने
वालों में भी आ गयी।
तौल रहे है चंद सिक्को में।
एक दुसरे के रिश्ते को।
होकर कठोर तेरे जैसे,
बन रहे है संवेदनाहीन।
ढो रहें है लाशों को,
अपने ही कंधे पर।
अपनों की।