वैशाखी की पावन बेला, मन में प्यार जगाती है।
वैशाखी की पावन बेला, मन में प्यार जगाती है।
वैशाखी की पावन बेला, मन में प्यार जगाती है।
नफरत छोड़ो मिलकर बैठो, मन तकरार मिटाती है।।
फसलें ऊँची प्यारी लगती, खेतों में हरियाली है;
कृषकों के जीवन में आई, देखो आज दीवाली है;
अन्न देवता के कारण ही, जगती हर घर बाती है।।
युग द्रष्टा युग स्रष्टा गुरु ने, खालस पंथ सजाया था;
पावन धाम आनन्दपुर में ही, अमृत पान कराया था;
गुरु मर्यादा गुरु सिक्खी यह, सबके मन को भाती है।।
खूनी साका जलियाँवाला, देखा मन अकुलाया था;
उजड़ गया था बाग सुनहरा,फूल-फूल मुरझाया था;
वीर शहीदों की कुर्बानी, हमको याद दिलाती है।।
सुख-वैभव खुशहाली आए, धन-दौलत सौगात मिले;
नील गगन में दिखे "पूर्णिमा", सोने जैसी रात खिले;
श्रम उद्यम से किस्मत चमके, वैशाखी बतलाती है।।
तर्ज:फूल तुम्हें भेजा है खत में
गाओ, खुशी मनाओ घड़ी सुहानी आई है