वायु
वायु
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मैं वायु हूँ,
मैं गर आऊँ तो
शांत को समंदर कर दूँ।
मैं गर ठान लूँ तो
फ़िज़ा को सिकन्दर कर दूँ।
खाक हो जाये जहान
मैं गर जो आह भरूँ।
आसमां टूट पड़े
मैं गर जो सब निर्वात करूँ।